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विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है हिंदी में

Posted By adarsh pandey on 16 Sep 2022

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विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है हिंदी में

दोस्तों में आज आपको बता दूं कि विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितंबर को मनाया जाता है जितने भी श्रमिक होते हैं और कल कारखानों के मालिक होते हैं जहां पर लोहे के मशीन इत्यादि होते हैं अपने कारोबार में उन्नति के लिए पूरे हिंदू समाज और अन्य धर्म के लोग भी विश्वकर्मा पूजा हर्षोल्लास से मनाते हैं|  17 सितंबर को बता दें कि बहुत ही समझो संजोग का दिन होता है इस दिन भद्रा के अंतिम दिन होता है जिसे हम भद्रा सक्रांति भी कहते हैं इसी दिन हम यानी 17 सितंबर को यह उत्सव मनाते हैं|

विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को क्यों मनाया जाता है

दोस्तों उल्लेखनीय है कि 17 सितंबर को सृष्टि को रचने वाले ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र विश्वकर्मा भगवान जी का जन्म हुआ था और विश्वकर्मा जी एक शिल्पकार वस्तु का आज के भाषा में कहें तो या एक इंजीनियर थे| इन्होंने सृष्टि को सजाने संवारने का काम किया ब्रह्मा जी सिर्फ सृष्टि को सृष्टि की रचना की लेकिन सजाने संवारने का जिम्मा विश्वकर्मा जी को मिला इसीलिए 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है|

विश्वकर्मा शब्द का अर्थ क्या है

श्री विश्वकर्मा विष्णु पुराण के तहत विश्वकर्मा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ शिल्पकार देवता के नाम से दिया गया है|

हमारे हिंदू समाज में विश्वकर्मा को दिव्य वस्तुकार के नाम से जाना जाता है|

क्या विश्वकर्मा पूजा के दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है ?

दोस्तों हम आपको बता दें की राष्ट्रीय अवकाश पूरे देश में लागू होता है लेकिन प्रतिबंधित अवकाश कहीं-कहीं पर यानी कह सके तो राज्य में लागू होता है, इसलिए विश्वकर्मा पूजा के दिन प्रतिबंधित अवकाश होता है यह अवकाश राजस्थान हरियाणा और पंजाब में होता है राजस्थान हरियाणा पंजाब में विश्वकर्मा पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है|

विश्वकर्मा पूजा की सवारी क्या है

 हम आपको बता दें दोस्तों की भगवान विश्वकर्मा की सवारी हाथी है इसलिए हम इस दिन हाथी की भी पूजा करते हैं| विश्वकर्मा भगवान का असली नाम बृहस्पतए भगिनी भुवना ब्रह्मावादिनी हैं|

विश्वकर्मा पूजा 2022 में शुभ मुहूर्त क्या है

भगवान विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7:39 बजे से शाम को 9:11, 17 सितंबर 2022 को दिया गया है यह शुभ मुहूर्त पंचांग के द्वारा निकाला गया है

दो बाहु वाले, चार बाहु वाले, दस बाहु, एक मुख, पंचमुख इतने नामों से विश्वकर्मा भगवान को वर्णित किया जाता है इनके अनेक नाम है तथा इन के पांच पुत्र जिसमें मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, दैवज्ञ है|

पुराणों में वर्णित यह कहानी है कि विश्वकर्मा भगवान जन्म से ब्राह्मण थे या ब्राह्मण पूरा पुराण स्कंद पुराण तथा विश्वकर्मा पुराण में वर्णित है|

विश्वकर्मा भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र थे जिनका नाम वासुदेव है तथा इनके पिता जी का नाम माता जी का नाम अंगिरसी है|

भगवान विश्वकर्मा जी ने शिवजी का त्रिशूल भगवान कृष्ण जी की नगरी द्वारिका नगरी पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी पुष्पक विमान विष्णु जी का दर्शन चक्कर इंद्र का वज्र सोने की लंका का निर्माण किया था सोने की लंका शिव जी ने पार्वती जी के लिए बनवाया था लेकिन जब रावण को गृह प्रवेश के लिए ब्राम्हण के रूप में आमंत्रित किया तो ब्राह्मण ने यानी रावण ने सोने की लंका को है दान में मांग लिया था|

विश्वकर्मा जी की पुत्री का नाम रिद्धि और सिद्धि है रिद्धि और सिद्धि का विवाह शिव जी के पुत्र भगवान गणेश से हुआ और भगवान गणेश जी के पुत्र दो हुए, जिनका नाम शुभ और लाभ है|

कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा जी की 4 पत्नियां थी आकृति रति प्राप्ति और नंदी और इन के 6 पुत्र हुए जिनका नाम मनु चाक्षुष, शम, काम, हर्ष, विश्‍वरूप और वृत्रासुर है और उनकी दो पुत्रियां बहिर्श्‍मती और संज्ञा संज्ञा के विवाह सूर्य देव से हुआ था यानी सूर्य देव भगवान विश्वकर्मा के दमाद जी|

 

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